Sunday, January 19, 2020

धन का महत्व

पैसा तो भैया लाईफ में होना ही चाहिए। जिस इंसान के पास पैसा नहीं होता उसकी लोगों को बस बुराई ही नजर आती है। पैसा हो तो उस इंसान की लोग खूब इज्जत करते हैं। पीठ पीछे चाहे जो बोल लें लेकिन प्रत्यक्ष में उसका सम्मान करते हैं। साधुओं की बात और है, धन के आधार पर उन्हें सम्मान  नहीं दिया जाता। लेकिन आजकल तो साधु भी धन संग्रह में रुचि लेने लगे हैं। कई बाबा तो उदयोगपतियों की तरह धनी हो गए हैं। कुछ तो अच्छे खासे व्यापारी बन गए हैं। और अर्थव्यवस्था भी खासा लाभ पहुंचा रहे हैं। इससे एक बड़ा संदेश यह जाता है कि धन हमें स्वतंत्रता देता है। हम चाहे साधारण तरीके से रहें या फिर खर्चीला जीवन अपनाएं। धन तो भैया होना ही चाहिए। बाकी इस पर किसी तरह की बहस सब बकवास है।

Tuesday, January 7, 2020

साइंस या आर्ट्स

चालीस वर्ष पूर्व रोजगार के सारे अवसर साइंस पढ़ने वालों के लिए थे। मुझे भी कहा जाता था कि साइंस पढ़ो इसमें स्कोप है। दसवीं के बाद मैंने साइंस पढ़ी। उससे उब गया तो कॉलेज में आर्ट्स में नामांकन करवा लिया। फिर इंजीनिरिंग का दौर चल पड़ा। सभी इंजीनियरिंग पढ़ रहे थे। मैं छूट गया। कंप्यूटर की पढ़ाई कर लोग धड़ा धड़ अमेरिका जा रहे थे। मुझे भी अपने देश में ही एक छोटी सी नौकरी मिल गई। जीवन की गाड़ी चल निकली। बंगला गाड़ी तो नहीं प्राप्त कर पाया लेकिन विविध अनुभव- कुछ खट्टे तो कुछ मीठे, खूब मिले। अब बस एक बलवती इच्छा है और वो है विश्व भ्रमण की। राहुल सांकृत्यायन की एक पंक्ति याद आती है - सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां, जिंदगानी गर बची तो फिर नौजवानी फिर कहां। जो महत्वपूर्ण है वह आसानी से प्राप्त है। और जो यह प्रपंच हमने अपने जीवन के चारो ओर रच रखा है वे जीवन को सरल और अनंदायक बनाने में बाधक हैं। साइंस और आर्ट्स का द्वंद कोई मुद्दा ही नहीं है। यह हमारा ध्यान भटकाने के लिए हैं। मैं तो कहता हूं सिर्फ बकवास है। 

Sunday, January 5, 2020

देश या विदेश

मेरे एक मामा अमेरिका में रहते हैं। उनके पास छह बेडरूम का घर है। घर के आगे बागान भी है। पीछे एक स्विमिंग पूल भी है। उनके पास दो बीएमडब्लू गाड़ी है। मामी भी एक बड़ी  कंपनी में काम करती हैं। पिछले साल वे नाना नानी को अमेरिका दिखाने ले गए थे। नाना नानी छह महीने के लिए अमेरिका गए थे। लेकिन दो महीने में ही वापस आ गए। उन्हें अपने गाँव और अपने दूसरे बच्चों की बहुत याद आ रही थी। मामा जब भी इंडिया आते हैं तो खूब खुश नज़र आते हैं। घूम घूम कर अपने सभी मित्रों से मिलते हैं। देशी खाने की तारीफ करते नहीं थकते। वापस अमेरिका जाते वक्त उनकी आँखें नम हो जाती हैं। हमलोग उनपर बहुत गर्व करते हैं। अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में शान से उनका नाम लेते हैं। उनका नाम लेने से समाज में शायद हमारा स्थान कुछ ऊंचा हो जाता है। मेरी भी इच्छा है कि मैं भी अमेरिका में रहूँ। उनसे जब मैंने यह कहा तो उनके चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। फिर उन्होने कहा कि क्यों जाना चाहते हो? मैंने कारण गिनाए- आलीशान घर, महंगी गाड़ियाँ, डॉलर और American Dream. उन्होने कहा- सब बकवास है! 

Saturday, January 4, 2020

मांसाहार या शाकाहार

मांस खाने वाले व्यक्ति नाना प्रकार के रोगों से ग्रस्त होते हैं। अल्पायु होते हैं। शाकाहारी लोग स्वस्थ होते हैं। दीर्घायु होते हैं। घोड़ा मांस नहीं खाता। चने और घास खाता है। उसके अंदर ऊर्जा का अक्षय भंडार होता है। लगातार घंटों वह बिना थके दौड़ सकता है। उसकी इस शक्ति से प्रभावित होकर ही मोटर की शक्ति को हॉर्स पॉवर कहा जाता है। चीता और शेर मांस खाते है लेकिन दौड़ की ऊर्जा में वे घोड़े का मुकाबला नहीं कर सकते। गोरिल्ला और हाथी भी शाकाहारी होते हुए भी बहुत बलवान होते हैं। शराब भी इसी प्रकार स्वास्थ्य को नुक्सान पहुंचाती है। लोगों को अल्पायु बनाती है। खुशवंत सिंह, अंग्रेजी के लेखक की निनानवे वर्ष की आयु में दिल्ली में मृत्यु हो गई। उन्होंने जीवन भर मांस खाया और शराब पी। नीरद चौधरी सौ की आयु में मरे। मांस मछली और शैम्पेन के शौकीन। जैन मुनि तरुण सागर 51 वर्ष में ही संसार से चले गए। मांसाहार और शराब से उनका दूर दूर तक कोई नाता नहीं था। सत्य क्या है पता नहीं! मांसाहार और शाकाहार का झगड़ा मैं तो कहता हूं बेकार है। इसके विरोध तथा समर्थन के सारे तर्क सब बकवास हैं।

ब्रांडेड या नॉन ब्रांडेड

क्या हमें ब्रांडेड वस्तुएं खरीदनी चाहिए? ज्यादातर मामलों में ब्रांडेड चीजें लोग सामाजिक प्रतिष्ठा के चक्कर में खरीद लेते हैं। विशेषकर वे लोग जो इसका खर्च तो नहीं उठा सकते लेकिन दिखावें में खरीद लेते हैं। इस चक्कर में वे वित्तीय समस्याओं में फंस जाते हैं। मेरे एक मित्र जो एक कलाकार के रूप में संघर्ष कर रहे थे, महंगे ब्रांडेड वस्त्र पहनते थे। उनका कहना था कि वे ऐसा इसलिए करते हैं इससे उन्हें अवसाद से निकलने में मदद मिलती है। उन्हें लगता है कि वे जीवन में अच्छा कर रहे हैं। तो जो भी थोड़ी बहुत कमाई वे करते थे वे ब्रांडेड वस्तुएं खरीदने में लगा देते। एक ही तो जीवन है। ॠण कृत्वा घृतं पिवेत। उधार ले कर भी घी पियो। बाकी सब बकवास है। 

Wednesday, January 1, 2020

सरकारी नौकरी या प्राइवेट

आज ज़्यादातर प्राइवेट कंपनियों में कार्य करने वाले युवाओं के पिता या माता सरकारी नौकरियों में थे। यह पीढ़ी सरकारी नौकरियों के पीछे भाग नहीं रही। उनके लिए नौकरी का मतलब है प्राइवेट बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरियाँ करना। सरकारी नौकरी की तलाश में आज ज़्यादातर युवा बहुत ही छोटे शहरों के हैं। या फिर जिनके पास कोई टेक्निकल डिग्री नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि सरकारी नौकरियों में प्रतिस्पर्धा कम हो गई है। कई इंजिनियर तो सरकार में विभिन्न पदों पर नौकरियाँ कर रहें हैं। प्रतीत होता है आज युवाओं के पास अवसर अधिक हैं। विस्मय भी होता है जब यह सुनने में आता है देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। सत्य क्या है? यह कोई नहीं बताता । या फिर लोग सत्य नहीं जानते। या फिर इसे अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति हेतु तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं। हर पक्ष एक दूसरे को यह कहने में लगा है-'सब बकवास है!'  

Sunday, December 29, 2019

अरैंज मैरीज या लव मैरीज

हम जिसे जानते नहीं उससे विवाह कैसे कर सकते हैं? अरैंज मैरीज में हम एक अजनबी से विवाह करते हैं। हमारे जीवन साथी का चुनाव हमारे माँ बाप करते हैं। जबकि लव मैरीज में हम उससे विवाह करते हैं जिससे हम प्रेम करते हैं। अरैंज मैरीज में तलाक के मामले यद्द्पि कम हैं लेकिन घुट घुट कर कई लोग संबंध निभाते हुए पाए जाते हैं। लव मैरीज में तलाक के मामले ज्यादा पाये गए हैं।  इतने लंबे समय तक दो लोगों के साथ रहने में ऊब होना स्वाभाविक है। अंगेजी में एक कहावत है- Familiarity breeds contempt. संबंध को हमेशा जवान बनाए रखने के लिए कुछ न कुछ नया करते रहना जरूरी है। वैसे इसमे काफी ऊर्जा और संसाधन खर्च होते हैं। मेरे एक मित्र जो अभी तक कुवांरे हैं और जो विवाह के विरुद्ध हैं का कहना है कि विवाह प्रकृति सम्मत नहीं है। विवाह मानव निर्मित संस्थान है। इसमें समस्या होना स्वाभाविक है। उनका कहना है यों भी धरती पर जनसंख्या बहुत बढ़ चुकी है। विवाह मत करो। विवाह, सुखी वैवाहिक जीवन, जन्म-जन्म का संबंध आदि आदि, सब बकवास है!